...

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तुम कुछ खास हो.....
मैं रेत का जैसे टीला हूँ,
तू लहरों की है धार कोई।
मैं दुख में बीता पतझड़ तो,
तू खुशियों की बरसात कोई।

मैं हूँ मिराज एक भ्रम जैसा,
तू सच्चाई का सागर है।
जो निगल गया है ख्वाब कई,
वो दरिया मैं तू गागर है।

जो बीत चुका वो कल मैं हूँ,
तू आने वाला कल ठहरा।
तू शामिल हर एक उत्सव में,
मैं पीड़ चरम और दुख गहरा।

न शामिल मेरी दुनिया में
मैं, पर तू मुझमें शामिल है
कुछ ख्वाब अधूरे हैं अब भी,
कुछ ऐसे हैं जो हासिल हैं।
कुछ ख्वाब अधूरे हैं अब भी....

© AK. Sharma