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स्वतंत्रता_प्रयास
#स्वतंत्रता_प्रयास
इस मातृभूमि का अंग हूं जो
तो चलो समर में चलता हूं
ज्यों बलिदानी बलिदान हुए
मैं भी उनमें एक बनता हूं

यों तो साधारण कर्म मेरे
मैं कुनबाओं का वासी था
दो वक़्त की रोटी चाहत थी
और परिवारिक अभिलाषी था

सुनता था जनों से समाचार
बलिदानी वो दुर्लभ विचार
""बाल उमर केही तो थे""
सुन, उबल पड़ते थे लहू लाल,
फिर नर संघरों की बात सुनी
मन मचल मचल सकुचाता था
हे विधना, तू वो पथ बतला
जिसपे चल के रोकुं ये प्रहार ।

हे चंडी! मुझको...