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जान
अगर जानने से जान जाती
तो फिर क्यों किसी की जान जाती।
जान का जाना तो आसान है
मगर जान जाने से जान जाती।
समझकर जान, जान दिया
जान ने कहा नासमझ जान दिया।
जान लेने देने का अब रिवाज है
जान को ना जानकर जान ने जान दिया।
सब चक्कर बस जान का है
जान ना हो तो चक्कर किस काम का है।
हर वक़्त रहती है उलझन में जान,
उलझन में ना हो तो जान किस काम का है।
© (...MUKHTAR A. ANSARI...)
तो फिर क्यों किसी की जान जाती।
जान का जाना तो आसान है
मगर जान जाने से जान जाती।
समझकर जान, जान दिया
जान ने कहा नासमझ जान दिया।
जान लेने देने का अब रिवाज है
जान को ना जानकर जान ने जान दिया।
सब चक्कर बस जान का है
जान ना हो तो चक्कर किस काम का है।
हर वक़्त रहती है उलझन में जान,
उलझन में ना हो तो जान किस काम का है।
© (...MUKHTAR A. ANSARI...)
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