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एक ख़्वाब
एक ही ख़्वाब कई बार यूंही देखा है मैंने
तूने साड़ी में छुपाली है मेरी चाबियां घर की
और चली आई है बस यूंही मेरा हाथ पकड़ कर
घर की हर चीज़ संभाले हुए अपनाए हुए तो
तू मेरे पास मेरे घर पे मेरे साथ है सोनू
मेज़ पर फूल सजाते हुए देखा है कई बार
और बिस्तर से कई बार जगाया भी है तुझ को
चलते फिरते तेरे कदमों की आहट भी सुनी है
गुनगुनाती हुई निकली है गुसल खाने से जब भी
अपने भीगे हुए बालों से टपकता हुआ पानी
मेरे चेहरे पर झटक देती है तू सोनू
फर्श पर लेट गई है तो कभी रूठ के मुझ से
और कभी फर्श से मुझ को भी उठाया है माना कर
ताश के पत्तो पे लड़ती है कभी खेल में मुझ से
और कभी लड़ती भी ऐसे है के बस खेल रही हो
और आगोश में रहने को...............
और मालूम है जब देखा था ये ख़्वाब तुम्हारा
अपने बिस्तर पे मैं उस वक्त पड़ा जाग रहा था
© Farhan Haseeb
तूने साड़ी में छुपाली है मेरी चाबियां घर की
और चली आई है बस यूंही मेरा हाथ पकड़ कर
घर की हर चीज़ संभाले हुए अपनाए हुए तो
तू मेरे पास मेरे घर पे मेरे साथ है सोनू
मेज़ पर फूल सजाते हुए देखा है कई बार
और बिस्तर से कई बार जगाया भी है तुझ को
चलते फिरते तेरे कदमों की आहट भी सुनी है
गुनगुनाती हुई निकली है गुसल खाने से जब भी
अपने भीगे हुए बालों से टपकता हुआ पानी
मेरे चेहरे पर झटक देती है तू सोनू
फर्श पर लेट गई है तो कभी रूठ के मुझ से
और कभी फर्श से मुझ को भी उठाया है माना कर
ताश के पत्तो पे लड़ती है कभी खेल में मुझ से
और कभी लड़ती भी ऐसे है के बस खेल रही हो
और आगोश में रहने को...............
और मालूम है जब देखा था ये ख़्वाब तुम्हारा
अपने बिस्तर पे मैं उस वक्त पड़ा जाग रहा था
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