...

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बारिश वाली याद
आज कितने समय बाद।
यह बरसती बूंदे जिंदा करवा गई वो बारिश वाली याद।।

कितना निश्चिंत समय होता था वो।
बारिश में खूब नाचते थे और वहीं करते थे, मन कहता था जो।।

वो बारिश में स्कूल ना जाने का बहाना।
यां वापसी में कभी बारिश में यूं भीगते हुए घर आना।

पानी का मुहल्लो की गलियों में इस कदर भर जाना।
उसमें भी कागज की नाव चला कर आनन्द उठाना।।

रविवार को कभी जो बारिश आना।
घर की छत पर खूब हल्ला मचाना।।

किशोरावस्था में बारिश का वो नए एहसास जगाना।
किसी चाहने वाले संग बारिश में घूमने के सपने सजाना।।

नौकरी करने लगे तो बारिश के आने से कभी परेशान हो जाना।
और कभी तो सारा काम छोड़ खिड़की से बारिश को निहारते जाना।।

अब जब भी बारिश है आती।
संग अपने वहीं सब मीठी यादें है लाती।।

आए जो बारिश हम उसे बस निहारते है रहते।
नए विचार दिमाग में तब पनपने है लगते ।
उन्हीं विचारों को फिर शब्दों में ढाल हम आप से है कहते।।




© Vasudha Uttam