...

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हर तहरीर आख़िरी लगती है...
क़हर के कोहरे में हर तहरीर आख़िरी लगती है,
कैसे करूँ बयाँ, हर बात..जैसे शाइरी लगती है।

रखती है हिम्मत, उम्मीद नहीं छोड़ती कविताएँ,
जीने के लिये, सिर्फ़ यही एक साहिरी लगती है।

यूँ भी सहेजने को इसके...