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हर तहरीर आख़िरी लगती है...
क़हर के कोहरे में हर तहरीर आख़िरी लगती है,
कैसे करूँ बयाँ, हर बात..जैसे शाइरी लगती है।
रखती है हिम्मत, उम्मीद नहीं छोड़ती कविताएँ,
जीने के लिये, सिर्फ़ यही एक साहिरी लगती है।
यूँ भी सहेजने को इसके सिवा रह क्या जायेगा,
सँवारके ख़याल ख़ुशियों की ख़ातिरी लगती है।
कभी फ़िक्र, कभी किसी का ज़िक्र, ले आती है,
कभी-कभी मुझे ये मेरी जैसे हाज़िरी लगती है।
रहे अपनी 'धुन' में, नहीं किसी से शिकवे-गिले,
ये कविताएँ अक्सर ही मुझे मुख़बिरी लगती है।
-संगीता पाटीदार 'धुन'
#Poetry #Hindi #sangeetapatidar #Life
© संगीता पाटीदार 'धुन'
कैसे करूँ बयाँ, हर बात..जैसे शाइरी लगती है।
रखती है हिम्मत, उम्मीद नहीं छोड़ती कविताएँ,
जीने के लिये, सिर्फ़ यही एक साहिरी लगती है।
यूँ भी सहेजने को इसके सिवा रह क्या जायेगा,
सँवारके ख़याल ख़ुशियों की ख़ातिरी लगती है।
कभी फ़िक्र, कभी किसी का ज़िक्र, ले आती है,
कभी-कभी मुझे ये मेरी जैसे हाज़िरी लगती है।
रहे अपनी 'धुन' में, नहीं किसी से शिकवे-गिले,
ये कविताएँ अक्सर ही मुझे मुख़बिरी लगती है।
-संगीता पाटीदार 'धुन'
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