जात मेरी
क्या करोगे जात मेरी जान करके,
मुझको नीचा खुद को ऊंचा मान करके,
ख़ुद के माथे पे नशे का भान करके,
जात समझो जात का सम्मान करके,
जिसके भीतर ज्ञान का परिवेश हो,
और साधारण मानवों के भेष हो,
दया, करुणा, क्षमा, विनती हों भरे जिसमें,
मन में ईर्ष्या, द्वेष ना आवेश हो,
तुम उसी को ब्रह्मज्ञानी मान लेना,
जात उसकी ब्राह्मण पहचान लेना,
बाजुओं में शक्ति की ज्वाला भरी हो,
तेज़ आभा ओढ़कर मृत्यु खड़ी हो,
दुश्मनों...
मुझको नीचा खुद को ऊंचा मान करके,
ख़ुद के माथे पे नशे का भान करके,
जात समझो जात का सम्मान करके,
जिसके भीतर ज्ञान का परिवेश हो,
और साधारण मानवों के भेष हो,
दया, करुणा, क्षमा, विनती हों भरे जिसमें,
मन में ईर्ष्या, द्वेष ना आवेश हो,
तुम उसी को ब्रह्मज्ञानी मान लेना,
जात उसकी ब्राह्मण पहचान लेना,
बाजुओं में शक्ति की ज्वाला भरी हो,
तेज़ आभा ओढ़कर मृत्यु खड़ी हो,
दुश्मनों...