...

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जात मेरी
क्या करोगे जात मेरी जान करके,
मुझको नीचा खुद को ऊंचा मान करके,
ख़ुद के माथे पे नशे का भान करके,
जात समझो जात का सम्मान करके,
जिसके भीतर ज्ञान का परिवेश हो,
और साधारण मानवों के भेष हो,
दया, करुणा, क्षमा, विनती हों भरे जिसमें,
मन में ईर्ष्या, द्वेष ना आवेश हो,
तुम उसी को ब्रह्मज्ञानी मान लेना,
जात उसकी ब्राह्मण पहचान लेना,
बाजुओं में शक्ति की ज्वाला भरी हो,
तेज़ आभा ओढ़कर मृत्यु खड़ी हो,
दुश्मनों के सर को धड़ से अलग करके,
युद्ध के आह्वान को फिर भी खड़ी हो,
जिसका जीवन दूसरों के हित लिए हो,
मन में बस वह एक ही यह व्रत लिए हो,
तुम उसी को वीर क्षत्रिय जान लेना,
तुल्य उसको राणा के तुम मान लेना,
कुछ इसी तरह से सब जातें बनी थी,
कर्मों के आधार पर सबमें बंटी थी,
कोई ईर्ष्या द्वेष उनके बीच ना था,
छुआ छूत का तनिक भी क्लेश ना था,
पर समय के साथ ये सब ऐसे बिखरा,
टूट कर कुछ और ही के रूप निखरा,
कैसी-कैसी रूढ़ियां पनपी ना जाने,
कैसे आईं बेड़ियां कोई ना जाने,
हमको ही मिल करके फिर बदलाव लाना है,
सबके प्रति बस प्रेम का ही भाव लाना है,
हैं सभी इस देश के सब एक हैं,
रंग, रूप, भाषा, वाणी भले ही अनेक हैं...
#YearEndEchoes

© Er. Shiv Prakash Tiwari