...

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संस्कृति
भाल पर तिलक लगाते नही,
और बात बड़ी करने लगे हैं।
शिखा काटी कटाली हैं मूंछ,
फ़ैशन वैशन करने लगे है।

गीता पढ़ी ना कभी वेद पढ़े,
उपनिषद् ना खोल के देखे ।
ना देखी वाल्मीकि रामायण,
फिर क्यों तर्क करने लगे हैं।

आधुनिक होना हैं बात भली,
अधर्मी क्यू बनने लगे हो।
पाठ विदेशी पढ़कर के तुम,
धर्म को क्यों हरने लगे हो।

भारत की संस्कृति को समझो,
यहा की तो धरती भी मां हैं।
विश्व में सबसे पहले हमने
अपनेपन का ज्ञान सीखा हैं।

लिखने को कागज नही तो
क्या हमें ज्ञानी न कहोगे।
देखो पढ़ो शिलालेखो को,
उसपर हमने ज्ञान लिखा हैं।

अज्ञान के अंधेरे में सोया,
विश्व ने न देखे थे विद्यालय,
तब भी भारत की धरती पर
एक नही दो थे विश्वविद्यालय।।

प्रकृति से प्रेम किया और
जो भी पाया उसी से पाया,
त्याग पूर्वक भोग किया और
जो बचा पुनः उसे लौटाया।।

कभी न संसाधन का हनन किया,
ना ही कभी धन को व्यर्थ गवाया,
जो भी मिले मिल बाटकर खाना,
जग की सदा यह पाठ पढ़ाया।।

जीवन को समझने के लिए सुनो
व्यर्थ है सब आधुनिक उपकरण
जो ब्रम्हांड में है वो पिंड में है,
झांक के देखो अपना अंत:करण।

आधुनिक हो तो ऐसा होना जिससे
मानवता को नवीन प्रगति मिले।
जीवन को सही दिशा में
कर्म करने की गति मिले।।

विद्या को व्यापार बनाया और
और दौलत को बनाया महारानी।
सुनो आधुनिक की डुगडुगी वालो,
झूठा दिखावा है तुम्हारी कहानी।।

विद्या की तुम बात सुनो,
भारत की सौगात सुनो
ज्ञान से मुक्ति मिल जाती हैं।
आंखे अपनी खुल जाती है।

ज्ञानी वही जो परहित सोचे,
देखे ना अपने पांव की मौचे,
कर्म निरंतर करता रहे और
आंसू दूसरो के वो पोंछे।

आज देखो भाई से भाई लड़ा हैं,
ना ही कोई छोटा और ना बड़ा हैं।
राम से राज्य में देखो तुम जाकर,
राज्य त्यागने भाई के हेतु भाई खड़ा हैं।

क्यों तुम मान बैठे हो खुद को वैज्ञानिक।
जब परमाणु का कण कणाद ने खोजा।
विमान का शास्त्र लिखा भारद्वाज ने,
शल्य क्रिया को सुश्रुत ने खोजा।

पतंजलि ने वियोग को योग से जोड़ा,
द्नुर्विध्या ने शत्रु का मुंह मोड़ा।
रथ और महारथ सब मिलेगा जब
आधुनिकता का झूठा तोड़ोगे रोड़ा।।

आओ सीखो भारत में आकर,
मानव का धर्म क्या होता हैं।
जीवन को जीवन सा जीने का
असली रूप से मर्म क्या होता है।

भोग विलास सब त्याग कर,
पल भर में लोग बने सन्यासी,
जीवन की परिपाटी समझा गए,
प्रकृति पूजक सभी वनवासी।

नर से नारायण बनने तक की
यहां आज भी है संभावना,
शक्ति पूंज मानव को समझा,
देव तुल्य सबकी है भावना।

व्यर्थ तो कुछ भी बोल देते है,
उनकी बातो को जरा ना सुनो।
पढ़ो बात को समझो और फिर
सत्य को खुद अपने से ही बूनो।

नारी के लिए जो की जा रही ,
फिल्मी बातो में मत उलझो ।
पढ़ो शप्तशती पढ़ो इतिहास,
फिर तुम अपने मन में सुलझों।

मां को पहला दर्जा मिला है,
मां ही यहां पहली गुरु हैं।
जीवन की सारी तरक्की,
मां के कदमों से ही शुरू हैं।

मान बचाने जोहर करती है,
आन बचाने लड़ जाती है नारी।
बात जब हो मातृ भूमि की तो,
पुत्र तक को तज जाती है नारी।

अपाला, घोषा, गार्गी मैत्रेयी,
ज्ञानी बनी तो बनी बड़ी भारी,
और आन बचाने देश की जब
बात आई तो बनी कटारी।।

सीखना हो तो सीखो भारत की
वीर माताओं से जिसने देश हित
निज इकलौते लाल वार दिए।
और अपना सिंदूर त्याग दिया और
मातृभूमि का श्रृंगार किए।

आधुनिक हो और है समझ तो
बाप तुम्हारे वृद्धाश्रम में क्यों है।
मां को तुम प्रेम करते हों तो
खुले हुए विधवाश्रम क्यों है।

सीखो तो सीखो कुछ रामायण से,
बाप के दो वचन को बचाने हेतु,
राम ने खुशी से वनवास चुना है।
रेशम की कंबल की छोड़ के
कंटक का वन मार्ग चुना हैं।

भाई भरत ने भी बड़े भाई
के राज्य को कभी न अपना जाना है।
और राम की पग पादुका को,
सिंहासन के राज का अधिकारी माना है।

संस्कृति है यही भारत की,
जिसने नदियों को मां कहा है।
सुखों को त्याग पल भर मे,
महल छोड़ वनवासी रहा हैं।

काल की गणना मंत्र को पढ़ना,
सभी कर्मो को सिद्ध किया हैं,
भारत ने अपने ज्ञान को,
संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध किया हैं।

आज देखो ये कैसी दुर्दशा,
अपनी मां को सौतेली कहते,
और बाहर से आयी नई संस्कृति
को आज ये सब मां कहते हैं।

दूसरा तो अपना व्यापार चाहता है,
उसके माल को तो चमकायेगा ही,
अपनी गंदी भद्दी बातो को भी,
मक्खन से चिकनी चुपड़ी बताएगा ही।

तुम उलझ रहे हो विदेशी की मीठी चालों में,
फंस ही गए हो अब मकड़ी के जालों में।
तुम सोच रहे हो हम अंग्रेजी सीखें बेकाबू बने है।
पेंट शर्ट को पहना और विदेशी बाबू बने है।

हमने क्या खोया इसको तुम देखो,
समय मिले तो सोचो और समझो,
सभ्यता खोई संस्कृति को खोयीं,
माता क्यों वृद्धाश्रम में रोई।

आज नवीनता को मुबारक है,
लेकिन पुराना भी अपनाना पड़ेगा।
जंगल सारे बहुत काट लिए।
अब पेड़ लगाने वन जाना पड़ेगा।

अंग्रेजी तो सुनी पढ़ी और हो गए
इंसान से धातु की मशीन जैसे,
थे तुम एक मानव की संतान
और पता नही तुम बन गए कैसे।

संस्कृत को पढ़ो और पढ़ना पड़ेगा,
अपने पूर्वजों को समझना पड़ेगा।
संस्कारों का का महत्व होता है,
उस जीवन में उतारना पड़ेगा।

इच्छा लिप्सा की बहती नदियां
भोग को पकर भोगी बनोगे ।
एक बार समझो भारत को
योगी बनोगे उपयोगी बनोगे।

ये अंधविश्वास ये पाखंड जैसी सोच,
फैली नही फहलायी गयीं हैं।
शुद्ध और सात्विक मन में अधर्म की
कुटिलता आई नही लाई गई है।

भारत का सारा प्राचीन ज्ञान है झूठा,
ये बात फैली नही फैलाई गई है।
और इस बात को सत्य मान कर हमारे
द्वारा ही धर्म के कब्र पर मिट्टी ओढ़ाई गई हैं।

क्यू मान लेते हो सिनेमा की बातो को,
क्यों सच जान लेते हो विदेशी बातो को,
वो तो पार नही पा सकते भारत का।
इसलिए खत्म करना चाह रहे है ।

संस्कृत के अथाह समुद्र को
मैकाले अंग्रेजी से सुखा रहे है।
दोषी तो हम भी उतने ही है,
जो अंग्रेजों का राग ही गा रहे है।

किसी की टिप्पणी की मान लेते है,
भगवान है ही नही मान लेते हैं,
क्यों मूर्खता की हद करते हो,
अपनी बुद्धि को रद्द करते हो।

पढ़ने को है चार वेद अठारह पुराण,
उपनिषदों की तो लाइन लगी है,
रामायण महाभारत से ग्रंथ भी है।
पढ़ो उसे समझो समझाओ ।

ब्राम्हण पढ़ो पढ़ो अरण्यक,
दर्शन पढ़ो पढ़ो मीमांसा,
सब ज्ञान तुम्हे जब हो जाए अनुभव,
तब जाकर कुछ आवाज उठाओ।

आता जाता कुछ है ही नही,
ना वेद पढ़े ना पुराण पढ़े,
आ गए हमे ढोंगी बताने,
ये कैसे तुमने कर्म गढ़े।

सुनी सुनाई बाते जो
करते है उनको तुम रोको,
जो भारत का अपमान करे
उसे तुरंत तुम टोको।

सनातन संस्कृति भारत की
बिना जाने बिगाड़ रहे हो।
सुन लो अपनी ही लाशों को
अपनी कब्रों में गाड़ रहे हो।

जीवन जब भारत से शुरू हुआ,
तो क्यों विदेशीयत में बिगाड़ रहे हो।
विदेशी आ कर बन रहे है भारत के,
तुम विदेशी बनकर क्या उखाड़ रहे हो।

भारत को समझो और जानो पढ़ो लिखो
और संस्कार संस्कृति को जानो।
प्राचीन ज्ञान है लेकिन है वैज्ञानिक
इसको तुम अब अनुसंधानों।

भारत की ध्वजा को फहराओ,
सबका ही आनंद बन जाओ।
विश्व को सही राह दिखाने,
फिर विवेकानंद बन जाओ।।

© सिंहनाद