...

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“अंदोह-ए-उल्फ़त”
तकाजे-ए-उम्र-ए-मोहब्बत के बदले,
अंदोह-ए-उल्फ़त-ए-वफ़ा हो गया।

खोज-ए-दिल-ए-अहल ना हुआ दिल से,
ज़ख़ीरा-ए-गम-ए-दिल हो गया।

मस्लक-ए-सवाब-ए-नजर ना आया नजर,
कैद-ए-क़फ़स-ए-जवाब हो गया।

खादिम-ए-मोहब्बत-ए-ख़याबत था मैं,
बादशाह-ए-हुकूमत-ए-नफ़रत हो गया।

लज़ीज़-ए-नफ़रत-ए-दगा हूं अब,
गद्दार-ए-मोहब्बत-ए-रज़ा हो गया।

मंज़र-ए-नादिर-ए-इश्क़ था कभी,
मंज़र-ए-ग़ादिर-ए-इश्क हो गया।

“एक उम्र ही मांगा गया था। मिला जो अंदोह, उल्फ़त ना रहा।।”

© Rahul Raghav