“अंदोह-ए-उल्फ़त”
तकाजे-ए-उम्र-ए-मोहब्बत के बदले,
अंदोह-ए-उल्फ़त-ए-वफ़ा हो गया।
खोज-ए-दिल-ए-अहल ना हुआ दिल से,
ज़ख़ीरा-ए-गम-ए-दिल हो गया।
मस्लक-ए-सवाब-ए-नजर ना आया नजर,
कैद-ए-क़फ़स-ए-जवाब हो...
अंदोह-ए-उल्फ़त-ए-वफ़ा हो गया।
खोज-ए-दिल-ए-अहल ना हुआ दिल से,
ज़ख़ीरा-ए-गम-ए-दिल हो गया।
मस्लक-ए-सवाब-ए-नजर ना आया नजर,
कैद-ए-क़फ़स-ए-जवाब हो...