...

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'मैं हिन्दी हूँ '
लोग बहुत हैँ घर में मेरे, फिर भी मैं अकेली हूँ |
मुझको अपनाने से डरते जैसे मैं सौतेली हूँ |
संस्कृत की हूँ सगी बहन,पर क्यों इतना भेदभाव हैँ?
गैरों को सिर पे बिठा रहें पर मुझसे अलगाव हैँ |
जलन तब नहीं होती जब लोग अंग्रेजी अपनाते हैँ |
बुरा लगता हैँ जब मेरे चाहने वालों को नीचा दिखाते हैँ |
नहीं पसंद मुझको विदेशी भाषाओं संग मिश्रित होना |
किसको भला लगता अपभ्रन्स हो अस्तित्व खोना |
मेरे अपने ही मुल्क में गैरों का वर्चस्व हैँ |
विद्यालय, न्यायलय, हो या कार्यालय मेरा नहीं पहला महत्व हैँ |
सोचो कैसा लगता होगा अपने घर में बेगाना होना |
अपने ही घरवालों का किसी और के लिए दीवाना होना ||
© shweta Singh