नहीं रखता
जो गहरे हो मैं ऐसे मंज़र नही रखता
अब मैं आंखों में समंदर नही रखता
अब तो तपिश रहती है जून की हावी
अब मैं जुबान पे दिसंबर नही रखता
बहुत खामियां हैं मुझ में और रहेंगी
पर...
अब मैं आंखों में समंदर नही रखता
अब तो तपिश रहती है जून की हावी
अब मैं जुबान पे दिसंबर नही रखता
बहुत खामियां हैं मुझ में और रहेंगी
पर...