वो जो तेरे अलंकरण थे
तू आया था अपने संग
कुछ भी न लेकर
झूठ, फरेब, छल
सबकुछ शायद
रात सिरहाने रखकर
ही तू भूल बैठा हो
इन्हीं से तो तू खुद को
आठों पहर सजाकर
रखता था , मंद - मंद
मुस्कुराहट से झलक ...
कुछ भी न लेकर
झूठ, फरेब, छल
सबकुछ शायद
रात सिरहाने रखकर
ही तू भूल बैठा हो
इन्हीं से तो तू खुद को
आठों पहर सजाकर
रखता था , मंद - मंद
मुस्कुराहट से झलक ...