...

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शांति
शांत सा ये समां सारा
और झील का हो किनारा,
पास कोई बैठे हमारे
समझे जो हर इशारा,

चुस्कियां लेते चाय की
और खिलखिलाता ये चेहरा हमारा,
ढलता सूरज सामने
और कांधे पर सिर तुम्हारा,

आ अब लौट चलें
बहुत हुआ खिलखिलाना,
बिछड़ने का गम नही
बस पास बैठने का हो बहाना....
© sharma