डर अब इस बात का है कि, भूल ना जाए ख्यालों को।
#डिजिटलअनुगूंज
डर अब इस बात का है कि, भूल ना जाए ख्यालों को।
पहले हमको सब कुछ संजोकर, रखना पड़ता ख्यालों में।
डर सताता ख्यालों का हमको, कहीं भूल ना जाएं उन लम्हों को।
जब से हमारी हुई है दोस्ती, डिजिटल परिवार के बच्चों से।
सारी चिंताएं ताख पर रख, अब हम खोये रहते ख्यालों में।
कुछ दिन बाद हम ऐसे खोये उन बच्चों में, अब याद ना आती है हमको उन पुराने ख्यालों की।
फिर भी हम हर रोज कुछ ना कुछ, रखते उन्ही दीवारों में।
डर अब इस बात का है कि, भूल ना जाए ख्यालों को।
इन डिजिटल बच्चों ने है, ऐसी माया रची है भीतर।
चाहकर भी हम ना जा पाते, अपने ही ख्यालों के भीतर।
डर अब इस बात का है कि, भूल ना जाए ख्यालों को।
© All Rights Reserved
डर अब इस बात का है कि, भूल ना जाए ख्यालों को।
पहले हमको सब कुछ संजोकर, रखना पड़ता ख्यालों में।
डर सताता ख्यालों का हमको, कहीं भूल ना जाएं उन लम्हों को।
जब से हमारी हुई है दोस्ती, डिजिटल परिवार के बच्चों से।
सारी चिंताएं ताख पर रख, अब हम खोये रहते ख्यालों में।
कुछ दिन बाद हम ऐसे खोये उन बच्चों में, अब याद ना आती है हमको उन पुराने ख्यालों की।
फिर भी हम हर रोज कुछ ना कुछ, रखते उन्ही दीवारों में।
डर अब इस बात का है कि, भूल ना जाए ख्यालों को।
इन डिजिटल बच्चों ने है, ऐसी माया रची है भीतर।
चाहकर भी हम ना जा पाते, अपने ही ख्यालों के भीतर।
डर अब इस बात का है कि, भूल ना जाए ख्यालों को।
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