...

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कटी पतंग
दौड़ रहा है उसके पीछे
ना कोई चिंता ना कोई फिक्र
वो लहराती कटी हुई सी
भटक रही थी इधर उधर
अनजाने पते पे चलती
ना जाने है जाना कहां
जो था दौड़ा इतनी देर तक
उसको भी आराम मिला
अटक गई हैं पतंग यहाँ पर
ना जाने अब होगा क्या
कोशिश पे कोशिश जारी है
उम्मीदें ना हारी है
चल ता रहा कुछ देर यूहीं
थक हारे हिम्मत हारी
आखिर सोचा ना उसकी ना मेरी होगी
क्यूँ ना कर दूँ नष्ट इसे
फेंक के पत्थर चले गये सब
अभी भी लटक रहीं थी कटी पतंग
देख रही थी दूर से ये सब
मुस्काई ये स्तिथि देख कर.....