...

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यही मंज़िल है मेरी...
ज़िन्दगी, ख़याल, एहसास, रूह में शामिल है मेरी,
हाँ! तेरी याद ही तो जज़्बात की महफ़िल है मेरी।

दिल मेरा ज़रूर है, मगर धड़कनें काबू में तुम्हारे है,
हाँ! अब तुममें ही तो ये साँस-साँस दाख़िल है मेरी।

भटक दरबदर, दिल पहुँच ही जाता तुम्हारे दर पर,
हाँ! तुम्हारे दिल में हो मुक़ाम, यही मंज़िल है मेरी।

बात तुम्हारी हो, तो झूठ-सच में उलझा नहीं जाता,
हाँ! तुम पे करूँ मैं ऐतबार, ये सदा-ए-दिल है मेरी।

मतलब, बे-मतलब का हिसाब रखती नहीं है 'धुन',
हाँ! तुम्हारे नज़रिए में ये मोहब्बत, क़ाबिल है मेरी।
© संगीता साईं 'धुन'

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