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केवट
ऐसा भाग्य कहां किसी ने पाया होगा,
धोकर कमलवत चरणों को,
जल मस्तक पर लगाया होगा,
स्वयं को भाग्यवान बताया होगा,
जब प्रभु के चरणों को धोया होगा,
ऐसा भाग्य कहां किसी ने पाया होगा,
प्रभु की सेवा करने का मौका कहां किसी ने पाया होगा,
तप करते-करते निकल जाती है उम्र सारी,
फिर भी नहीं मिल पाते हैं दर्शन,
ना जाने कितना तपस्या किया होगा उसने,
तब जाकर यह अवसर पाया होगा,
धोकर प्रभु के चरणों को,
जल अपने मस्तक पर लगाया होगा,
जो करते हैं भवसागर पार,
उन्हें केवट ने नैया से पार कराया था,
बोला केवट ने नहीं चाहिए मुद्रिका नदी पार कराने का,
आज अपनी नैया से पार किया है मैंने आपको,
कल मेरी नैया पार लगाना भवसागर से मेरे प्रभु,
कहां किसी ने ऐसा मौका पाया होगा,
साक्षात प्रभु से अपनी बातें कहां कोई कह पाया होगा।
धोकर कमलवत चरणों को,
जल मस्तक पर लगाया होगा,
स्वयं को भाग्यवान बताया होगा,
जब प्रभु के चरणों को धोया होगा,
ऐसा भाग्य कहां किसी ने पाया होगा,
प्रभु की सेवा करने का मौका कहां किसी ने पाया होगा,
तप करते-करते निकल जाती है उम्र सारी,
फिर भी नहीं मिल पाते हैं दर्शन,
ना जाने कितना तपस्या किया होगा उसने,
तब जाकर यह अवसर पाया होगा,
धोकर प्रभु के चरणों को,
जल अपने मस्तक पर लगाया होगा,
जो करते हैं भवसागर पार,
उन्हें केवट ने नैया से पार कराया था,
बोला केवट ने नहीं चाहिए मुद्रिका नदी पार कराने का,
आज अपनी नैया से पार किया है मैंने आपको,
कल मेरी नैया पार लगाना भवसागर से मेरे प्रभु,
कहां किसी ने ऐसा मौका पाया होगा,
साक्षात प्रभु से अपनी बातें कहां कोई कह पाया होगा।
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