" मज़लूम ए वफ़ा "
हुस्न की महफ़िल में
हर चीज़ लुटा के आएं हैं
तेरी मुहब्बत में
बन कर प्रेम फ़कीर
फैलाई है अपनी सूनी झोली
तुझसे कीमती कोई और नगमा नहीं है
तेरे सिवा मेरा और कोई वफ़ा ए हकीम
इस जहां में मुनासिब नहीं है
मैं बेशक बहुत मज़लूम हूं
आया हूं तेरी महफ़िल में
मुझे रुसवा न कर...
हर चीज़ लुटा के आएं हैं
तेरी मुहब्बत में
बन कर प्रेम फ़कीर
फैलाई है अपनी सूनी झोली
तुझसे कीमती कोई और नगमा नहीं है
तेरे सिवा मेरा और कोई वफ़ा ए हकीम
इस जहां में मुनासिब नहीं है
मैं बेशक बहुत मज़लूम हूं
आया हूं तेरी महफ़िल में
मुझे रुसवा न कर...