...

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" मज़लूम ए वफ़ा "
हुस्न की महफ़िल में
हर चीज़ लुटा के आएं हैं
तेरी मुहब्बत में
बन कर प्रेम फ़कीर
फैलाई है अपनी सूनी झोली
तुझसे कीमती कोई और नगमा नहीं है
तेरे सिवा मेरा और कोई वफ़ा ए हकीम
इस जहां में मुनासिब नहीं है
मैं बेशक बहुत मज़लूम हूं
आया हूं तेरी महफ़िल में
मुझे रुसवा न कर
क्या तुम ख़ुश रह पाओगी
मेरे अश्कों को रुला कर
रब से तेरे लिए फ़रियाद की है
किसी चाहने वाला आशिक़ ने
तुझे हर सांस में याद किया है
तू मेरी वफ़ा को कुबूल कर
तू मेरे दिल को छू कर
मेरा हमनशीं कर दे
ठुकरा कर मुझे ये न भूल कर
मिलेगा न मुझ सा चाहने वाला
मिलेंगे तुझे तेरा दिल तोड़ने वाले
मेरी वफ़ा की बस्ती को उजाड़ कर
क्या बस पाएगी तेरी मुहब्बत की दुनियां
मेरा आसियां को तबाह कर।

Gautam Hritu





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