रक्त के धब्बों को
इन कविताओं को पढ़ते हुए लगता है जैसे हम अपने दारुण समय की एक डॉक्यूमेंट्री देख रहे हों जिसमें कवि एक-एक दृश्य दर्ज़ कर रहा है। कविता की सच्चाई इस से भी जानी जाती है कि वह अनुभव के भीतर से उत्पन्न हुई हो। लंबे समय से कश्मीर घाटी के पुलवामा में निवास करते हुए निदा अपने अनुभवों के रक्त के बीच खड़े हुए अवाम की तरफ से आवाज़ उठाते...