ग़ज़ल= करती है
मुहब्बत आग है तपती हदों को पार करती है ,
ये ज़ालिम कुन्द ख़न्जर है जिगर पे वार करती है ।
अगर हो तो क़यामत है न हो गर तो क़यामत है,
किसी का हश्र करती है कभी लाचार करती है ।
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ये ज़ालिम कुन्द ख़न्जर है जिगर पे वार करती है ।
अगर हो तो क़यामत है न हो गर तो क़यामत है,
किसी का हश्र करती है कभी लाचार करती है ।
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