...

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#मा कदापि त्यज /शांति खोज#
चल रौंद दें खुशियों तले गम के बड़े अंबार को
और कर दें वापस शिष्कियां शिस्कियों के संसार को।

आ देदें ठेका चांद को पथ को प्रकाशित कर दे वो
आ बादलों से ये कहें नभ को आच्छादित कर दें वो।

हम धूप में बरसात में बढ़ते निखरते जायेंगे
और काट देंगें वो अडंगा जो भी डगर में आएंगे।

हम रोटियों की लेंगे चादर और पक्षियों से लोरियां
पथ की थकान को कर किनारे लेते रहेंगे निंदियां।।

हम क्यूं रोएं जब गुनगुनाती फिर रही है हवा ये पंक्तियां
और क्यों छोड़ दें इन पंक्तियों पर यूं मचलती मस्तियां।