...

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jannat chahen jaisi ho
दुखती रग पर ऊँगली रखकर
पूछ रही हो कैसे हो ?
तुमसे ये उम्मीद नहीं थी
दुनिया चाहे जैसी हो
एक तरफ मैं बिलकुल तनहा
एक तरफ दुनिया सारी
अब तो जंग छिड़ेगी खुलकर
ऐसी हो या वैसी हो
जलते रहना चलते रहना
तो उसकी मज़बूरी है
सूरज ने यह कब चाहा था
उसकी किस्मत ऐसी हो
मुझको पार लगाने वाले
जाओ तुम तो पार lago
मैं तुमको भी ले dhubungi
कश्ती चाहें जैसी हो
ऊपर वाले अपनी जन्नत
और किसी को दे देना
मैं अपने दोज़ख main खुश हूँ
जन्नत चाहें जैसी हो