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हे राम!
हे राम! तुम्हारे जन्मभूमि पर,
कैसा अँधियारा छाया है?
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।

तुम कहते हो, तुम स्वामी हो,
तुम जग के पालनहारे हो।
तुम अंतर्यामी घट-घट वासी,
दीन, दुखियों के सहारे हो।
तुम ही काया, तुम ही माया,
इस सृष्टि पर, तुम्हरी साया।
धरती हो या अनंत व्योम का,
हर इक कण है तुम्हरा जाया।
फिर क्यूँ दीन-दुखियों को पथ में,
दनुजों ने तड़पाया है।
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।

जिस भूमि पर नारी पूजिता थी,
जहाँ मन पावन आधार रहा।
देव, ऋषि के यहाँ क्या कहने,
जहाँ दानव में भी संस्कार रहा।
हरण किया देवी का उसने,
छद्म भेष धारण कर के।
पर स्पर्श मात्र से दूर रहा,
मर्यादा का मान रखा उसने।
आज उसी भूमि पर अधमों ने,
कैसा कोहराम मचाया है?
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।

जनता के सेवक बन कर के,
सत्ता का सुख भोग रहे हैं।
मद्द फांस के अंध मोह मे,
जन का लहू वे सोख रहे हैं।
इतिहास बन गए दया, धरम अब,
पिचासिनियों की होती जयकारे हैं।
जो कल थे मानवता के रक्षक,
सब आज हुए हत्यारे हैं।
खो गई आज मन की मृदुलता,
तम का संकट गहराया हैं।
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।

हे राम! तुम जग के प्रणेता हो,
पुरुषोत्तम हो प्रभू कुल श्रेष्ठ।
मर्यादा के पोषक, संरक्षक,
मनुजता के धारक मनु ज्येष्ठ।
तुम रचयिता हो संस्कारो के,
तुम संहारक हो दुर्विचारो के।
सब दया धरम हर गुण विशेष,
है अधीन तुम्हारे शशि, दिनेश।
फिर कैसे तुम्हारे शासित भूमि पर,
दनुराज का पसरा साया है।
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।

© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।

© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey