हे राम!
हे राम! तुम्हारे जन्मभूमि पर,
कैसा अँधियारा छाया है?
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।
तुम कहते हो, तुम स्वामी हो,
तुम जग के पालनहारे हो।
तुम अंतर्यामी घट-घट वासी,
दीन, दुखियों के सहारे हो।
तुम ही काया, तुम ही माया,
इस सृष्टि पर, तुम्हरी साया।
धरती हो या अनंत व्योम का,
हर इक कण है तुम्हरा जाया।
फिर क्यूँ दीन-दुखियों को पथ में,
दनुजों ने तड़पाया है।
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।
जिस भूमि पर नारी पूजिता थी,
जहाँ मन पावन आधार रहा।
देव, ऋषि के यहाँ क्या कहने,
जहाँ दानव में भी संस्कार रहा।
हरण किया देवी का उसने,
छद्म भेष...
कैसा अँधियारा छाया है?
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।
तुम कहते हो, तुम स्वामी हो,
तुम जग के पालनहारे हो।
तुम अंतर्यामी घट-घट वासी,
दीन, दुखियों के सहारे हो।
तुम ही काया, तुम ही माया,
इस सृष्टि पर, तुम्हरी साया।
धरती हो या अनंत व्योम का,
हर इक कण है तुम्हरा जाया।
फिर क्यूँ दीन-दुखियों को पथ में,
दनुजों ने तड़पाया है।
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।
जिस भूमि पर नारी पूजिता थी,
जहाँ मन पावन आधार रहा।
देव, ऋषि के यहाँ क्या कहने,
जहाँ दानव में भी संस्कार रहा।
हरण किया देवी का उसने,
छद्म भेष...