दूर
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
मन में प्रेम बसाये पुकार रहा कोई ,
ये अनजान मन बेशक़ है ,फिर भी
उस संग अपना रिश्ता जोड़ रहा कोई ,
ऐ मेरे मन तू जिसका अंश है ,तुझे बुला रहा वही
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
मन में प्रेम बसाये पुकार रहा कोई ,
ये अनजान मन बेशक़ है ,फिर भी
उस संग अपना रिश्ता जोड़ रहा कोई ,
ऐ मेरे मन तू जिसका अंश है ,तुझे बुला रहा वही