...

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तस्वीरो से बाहर निकालो ना पापा
पापा तो हर रोज कहती हूँ
बेटी क्यो नहीं सुन पाती हूँ

खो कर भी तुमको मैं
हर रोज पाने की चाहत क्यों रखती हूँ

क्या यही रीति है इस दुनियां की
पा कर खोना, खो कर कभी ना पाना

अब आ भी जाओगे लौट कर,
हर दिन यही रहती हैं चाहत

पुरी नहीं होगी ये मेरी ख्वाहिश
मन दिल को क्यों नहीं बता पाता हैं

तेरे बिना मेरा कोई वजूद नहीं है पापा,
खो कर तुझको पाया नहीं है खुद को अब तक .

इस भीड़ भरी दुनिया में खो गयी हैं खुशीयाँ सारी
किसको ढुंढु कैसे पाऊ, अब हर दिन की यही पिटारी

बेटी हूँ बोझिल नहीं, कैसे समझाऊ मैं इस दुनियां को
हो गया है अब सब कुछ मुश्किल, कैसे बताऊ मैं ये आपको


नही मिलता है वो सुकुन जो था आपकी चार दिवारी में,
पा कर सब कुछ भी नहीं मिलता है वो आराम जो था आपकी घुड़सवारी में


मुश्किलो से लड़ कर जीतना तुमने ही सिखाया था ना पापा,
पता नहीं था ये आजमाइशी भी तुम पर ही करनी होगी

रोती हूँ जब मै इस चार दिवारी मे
आहट तो अब दरवाजो को भी नहीं होती

पहले तो एक खरोच से तुम घबरा ही जाते थे,
तो आज क्यों हो नहीं रही हैरानी तुमको मुश्किल मे देख मुझको


एेसा नहीं की प्यार भरा हाथ किसी ने फ़ेरा नही मेरे बालो मे,
पर महसूस हुई है कमी हर बार उन एहसासो की

एेसा नहीं की कमी हुई किसी चीज कि,
पर सबसे बड़ी कमी रही एक तेरे साथ ना होने की

माथे पे चुमन आज भी मिलते हैं माँ के,
लेकिन हर बार उस दुसरे चुमन का इंतजार रहती हैं

अब तो कुछ आप भी बोलो ना पापा,
तोड़ दो चुप्पी, बोल दो कुछ भी,
निकलो ना बाहर अब तस्वीरो से