तस्वीरो से बाहर निकालो ना पापा
पापा तो हर रोज कहती हूँ
बेटी क्यो नहीं सुन पाती हूँ
खो कर भी तुमको मैं
हर रोज पाने की चाहत क्यों रखती हूँ
क्या यही रीति है इस दुनियां की
पा कर खोना, खो कर कभी ना पाना
अब आ भी जाओगे लौट कर,
हर दिन यही रहती हैं चाहत
पुरी नहीं होगी ये मेरी ख्वाहिश
मन दिल को क्यों नहीं बता पाता हैं
तेरे बिना मेरा कोई वजूद नहीं है पापा,
खो कर तुझको पाया नहीं है खुद को अब तक .
इस भीड़ भरी दुनिया में खो गयी हैं खुशीयाँ सारी
किसको ढुंढु कैसे पाऊ, अब हर दिन की यही पिटारी
बेटी हूँ बोझिल नहीं, कैसे समझाऊ मैं इस दुनियां को
हो गया...
बेटी क्यो नहीं सुन पाती हूँ
खो कर भी तुमको मैं
हर रोज पाने की चाहत क्यों रखती हूँ
क्या यही रीति है इस दुनियां की
पा कर खोना, खो कर कभी ना पाना
अब आ भी जाओगे लौट कर,
हर दिन यही रहती हैं चाहत
पुरी नहीं होगी ये मेरी ख्वाहिश
मन दिल को क्यों नहीं बता पाता हैं
तेरे बिना मेरा कोई वजूद नहीं है पापा,
खो कर तुझको पाया नहीं है खुद को अब तक .
इस भीड़ भरी दुनिया में खो गयी हैं खुशीयाँ सारी
किसको ढुंढु कैसे पाऊ, अब हर दिन की यही पिटारी
बेटी हूँ बोझिल नहीं, कैसे समझाऊ मैं इस दुनियां को
हो गया...