...

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बचपन की गलियां
बचपन की गलियों से
गुजरा हूं जब मैं
तो उसका हंसता चेहरा
याद आ गया
वक्त बदले लोग बदले
आज क्यों उसका चेहरा
बनकर कोई ख्वाब आ गया

कहां मिलती है वह हंसी
जिसमें कोई गम नहीं होता
वक्त के पीछे जाकर देखा मैंने
गालिब यह वक्त किसी का नहीं होता


वो तस्वीर तेरे बचपन की
वह यूं तेरा मुस्कुराना
तेरी इस मुस्कान पर क्यों
गालीव यू मेरा मर जाना

₹1 का 13 बर्फ खिलाना
और खुद को बादशहा बताना
दोस्ती की उन कसमें पर
रेत गिरती रही
खींची थी जो दोस्ती की रेखा
धीरे धीरे वो मिटती रही

शरीर में रंग बदला
अब पैसा पैसा दिखता है
दोस्ती के शहर में ही क्यों
आज दोस्त नंगा बिकता है

एक दोस्त
© Akash shri vastav