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महिपत मोटो मानवी
मन मेलू महिपाल, मोटे दिल रो मानवी।
क्यों लेग्यो तूं काल, कांई विचारी केशवा।।
असुर वध्या अणमाप, सुरगै चिंतित सुर हुआ।
पिरथी छायो पाप,सलाह दो नारद सांतरी।।
नारद भाखी नेक, सूरां पूरां रो सारथी।
इण पिरथी पर एक, मुरधर रेवे मानवी।।
जिला जोधपुर जांण, जग चावो है जैसला।
सिंवर वीर सुजान, महीपत ही दुख मेटवे।।
तद सलाहकरी तत्काल,सताइस मई तेईस सन।
फिर मान सहित महिपाल, सुरगे सुरपति संचर्यों।।