...

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एकटक निहारा मत करना
सुनो,
जब मैं तुम्हारा उलझा हुआ इयरफोन सुलझाती हूँ,
जब मैं तुम्हें अपना कोई किस्सा सुनाती हूँ,
जब मैं तुम्हारी कमीज़ का बटन लगाती हूँ,
जब मैं तुम्हारे थके हुए पैरों को दबाती हूँ,
जब मैं तुम्हारे फैले हुए सामान को खामोशी से जमाती हूँ,
जब मैं तुम्हारे सिर को मालिश कर सहलाती हूँ,
जब मैं तुम्हारे गले में हर रोज टाई पहनाती हूँ,
जब मैं खाने का पहला निवाला तुम्हें खिलाती हूँ,
जब मैं पूजा में तुम्हारे आगे अपना सिर झुकाती हूँ,
जब मैं जाने-अनजाने ही तुम पर अधिकार जताती हूँ,


तो,
सुनो ना तुम ऐसा अब दुबारा मत करना,
इस वक़्त तुम मुझे एकटक निहारा मत करना।

दरअसल,
फिर मेरा ध्यान है जो भटक जाता है,
अगर तुम्हारा साया ही मेरे करीब आता है।
कुछ गिरता है फिर मुझसे, कुछ टकरा जाता है,
और मेरी हालत देख तुम्हें बहुत मज़ा आता है।।

देखो, तुम्हारी ये बदमाशी मेरा काम बढ़ाती है,
मगर, जानती हूँ..
यूँ मुझे घबराता देख तुम्हें बहुत हँसी आती है।।

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