घर V/s सरहद की मिट्टी
अपने जहन में घर,
और दिल में उनके देश बसता है...
वह आदमी आज भी घर जाने को तरसता है...
उठाकर नजरें जवाब देता तुम्हारे हर एक सवाल का,
लेकिन एक खत आया है...
जो मुझे घर से सरहद पर खींचता है...
शायद मेरी दीवानगी तुझसे थोड़ा ज्यादा उस मिट्टी से है,
जो मेरे जमीर को सिचती है...
एक ओर गम होता है तुझसे दूर...
और दिल में उनके देश बसता है...
वह आदमी आज भी घर जाने को तरसता है...
उठाकर नजरें जवाब देता तुम्हारे हर एक सवाल का,
लेकिन एक खत आया है...
जो मुझे घर से सरहद पर खींचता है...
शायद मेरी दीवानगी तुझसे थोड़ा ज्यादा उस मिट्टी से है,
जो मेरे जमीर को सिचती है...
एक ओर गम होता है तुझसे दूर...