कविता
कुछ न करके
मैं बहुत कुछ करता हूँ
कतरे की कीमत में
मैं दरिया खरीदता हूँ
मैं देखता हूँ,
फफक फफक कर
पत्थर रोते हैं
सहराओं के सीने से
आब निकलते हैं
खंडहर उठने,भागने
दौड़ने लगते हैं
खुश्बूओं पर
खुश्बूओं की कई...
मैं बहुत कुछ करता हूँ
कतरे की कीमत में
मैं दरिया खरीदता हूँ
मैं देखता हूँ,
फफक फफक कर
पत्थर रोते हैं
सहराओं के सीने से
आब निकलते हैं
खंडहर उठने,भागने
दौड़ने लगते हैं
खुश्बूओं पर
खुश्बूओं की कई...