...

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ग़ज़ल
हैरान थी निगाहें वो इतना हसीन था
कुछ उसके साथ-साथ वो लम्हा हसीन था

कुछ उसका हुस्न भी था वुजूहाते-बेख़ुदी
कुछ उस परी-मिज़ाज का लहजा हसीन था

कुछ गुलसिताँ की रौनक़ें भी पुर-शबाब थीं
कुछ उसकी शोख़ियों का भी जल्वा हसीन था

मुझ को तो होश ही न रहा देख कर उसे
कैसे बताऊँ यार वो कितना हसीन था

मौसम था सर्द, ओस थी फूलों पे महरबाँ
कल रात इस चमन का नज़ारा हसीन था

तारीफ़ उसकी मुझसे मुकम्मल न हो सकी
सच तो ये है कि नाम भी उसका हसीन था

छोटे से एक ऐब ने बर्बाद कर दिया
“इमरोज़” मैं भी वरना बला का हसीन था


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