...

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मेरी वेदना
जब कर दिया था मैंने खुद को तुम पर अर्पित
हो गई थी तुम्ही पर समर्पित
बन गई थी मैं तुम्हारी ही तर्पित
अनुभूत करती थी मैं तुम्हे अकल्पित
मेरी प्रीत भी थी अत्यंत ही दर्पित
बस मांगा था अनुराग तुमसे प्रत्यर्पित
पर क्यों था स्नेह तुम्हारा इतना अल्पित
क्या विश्वास था तुम्हारा परिकल्पित
जो कर दिया नेह को मेरे विसर्जित
© Swati(zindagi ki boond)