उलझन
उलझन
क्यों करती हो तुम ऐसे
हो अनजान हर बात से जैसे
समझ नहीं पाता मैं तुझको
रोज़ अलग तुम लगती मुझको।।
गर रहस्य में ही रहना है
सीधा साफ नहीं कहना है
बन जाओ तुम चांद रात सी
मैं चकोर सा रह जाऊंगा
देखुंगा बस दूर दूर से...
क्यों करती हो तुम ऐसे
हो अनजान हर बात से जैसे
समझ नहीं पाता मैं तुझको
रोज़ अलग तुम लगती मुझको।।
गर रहस्य में ही रहना है
सीधा साफ नहीं कहना है
बन जाओ तुम चांद रात सी
मैं चकोर सा रह जाऊंगा
देखुंगा बस दूर दूर से...