उलझन
उलझन
क्यों करती हो तुम ऐसे
हो अनजान हर बात से जैसे
समझ नहीं पाता मैं तुझको
रोज़ अलग तुम लगती मुझको।।
गर रहस्य में ही रहना है
सीधा साफ नहीं कहना है
बन जाओ तुम चांद रात सी
मैं चकोर सा रह जाऊंगा
देखुंगा बस दूर दूर से
मिलने की आस छोड़ जाऊंगा।।
हर उम्मीद होती है ना पूरी
रह जाती है चंद अधूरी
कुछ उम्मीदों के टूटने पर
मन जख्मी सा हो जाता है
हर आस कर ले जो पूरी
ऐसी किस्मत कौन पाता है।।
गर इंतजार में बल होता
चकोर चांद को पा ही जाता
देख कर उसकी विरह वेदना
चांद जमीन पर आ ही जाता
उलझा गर ना होता मन में
चांद से ठोकर वो ना खाता
ढूंढता खुशियां इस धरती पर
आसमान से दिल ना लगाता।।
क्यों करती हो तुम ऐसे
हो अनजान हर बात से जैसे
समझ नहीं पाता मैं तुझको
रोज़ अलग तुम लगती मुझको।।
गर रहस्य में ही रहना है
सीधा साफ नहीं कहना है
बन जाओ तुम चांद रात सी
मैं चकोर सा रह जाऊंगा
देखुंगा बस दूर दूर से
मिलने की आस छोड़ जाऊंगा।।
हर उम्मीद होती है ना पूरी
रह जाती है चंद अधूरी
कुछ उम्मीदों के टूटने पर
मन जख्मी सा हो जाता है
हर आस कर ले जो पूरी
ऐसी किस्मत कौन पाता है।।
गर इंतजार में बल होता
चकोर चांद को पा ही जाता
देख कर उसकी विरह वेदना
चांद जमीन पर आ ही जाता
उलझा गर ना होता मन में
चांद से ठोकर वो ना खाता
ढूंढता खुशियां इस धरती पर
आसमान से दिल ना लगाता।।