...

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कटी हुई उँगली....
कटी हुई ऊँगली.......

नहीं था इस तरह जरूरी
उसका हाथ पकडता ही वो
मगर उसने बात सुनी थी
और कहा भी था, शायद न पकड़ पाओ
हम किसी एकांत में न मिल सकेंगे
हाँ मायुषि में था वो
उसने मन ही मन ये सच स्वीकार कर लिया
यूँ सबके सामने वो उसे
आँख उठाकर नहीं देख सकता
तो कैसे पकड़ेगा हाथ उसका
बात आई गई हुई

वो मिली , पब्लिक पार्क, उसने पूछा
"तुम्हारी उँगली पर चोट कैसी"
उसने बताया
"सब्जी काटते चाकू से कटी"
"ओह" "जी"
"लो परांठा खाओ"
फिर उसने टटोला अपना बैग
जाने क्या खोज रही रही थी
फिर उसने उड़ेल दिया सारा सामान
और निकाली एक बैंडेज
"लो, पुरानी हटाकर नई लगा दो"

उसने इधर उधर देखा
पुरानी बैंडेज हटाई
बहुत बड़ा कट था
उसे सिरहन हुई
वो दर्द महसूस कर रहा था
उसने नई बैंडेज लगा दी
वो मुस्कुराई, बोली
"देखो अनजाने में सही हाथ पकड़ा न"
वो मुस्कुराया, कुछ न बोला

"अब हमें ऐसे ही मिलना पड़ेगा
मेरी सगाई हो गई है"
"हाँ, पर आगे से कभी ये जिद न करूँगा"
"हाथ पकड़ने वाली क्या"
"हां" "हम्म, पर हम यूँ ही किसी गार्डन में मिलेंगे"
"और अगली बार भी, बैंडेज लेकर आओगी, चाकू से कट लग जायेगा"
इस बार दोनों की आंखों से
दो दो मोती लुढ़क गए थे
"मैं न आऊंगा, उँगली काटकर, हाथ पकड़वाना अच्छा नहीं"
"आओ चलते हैं, बहुत टाइम हुआ है"
वो उसे देर तक वहाँ से जाते हुए देखता रहा

संजय नायक"शिल्प"
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