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संभल जा ए मन मेरे
स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
लगाकर भस्म , त्रिपुंड
बन गया तपस्वी सा ये मन
कुछ और न अब ये चाहे
ऊँ में समा कर खुद को
निर्विकार ,निर्विशेष कर जाए
ध्यान लगे बस ऐसा
कि खुद को भूल जाए
हे भगवान तुम हममें
और हम तुम में समा जाए
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