...

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अंधकार के झकझोर से
घंघोर अंधकार में एक साया पृतिबिंब सा,
या यू कहे अंतरातम। मन की एक छबी जीवंत सी।
आज नज़र के सामने चली आ रही अनंत सी,
मौन हो सिखा रही, आईना दिखा रही,
अवगुणों की खान मै, घमंड की सरताज हूँ, रुकु नही झुकू नही, अन्याय करती फिरूँ,
आज मेरा आतमं ही मुझे दिक्का रहा,
प्रतिबिंब बन बता रहा,
बड़ी रहु या छोटी, मै भी एक मनुष्य हूँ,
कर्मो से बँधी हुईं, मृत्यु से परे नहीं,
डुउंड से हटू नही।




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