...

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शुरुआत
ना मुझे होश था ना कोई खबर
सूरज के ढलने की,
ख्वाहिश थी दिल में मेरे
ख्वाबों को हकीकत में बदलने की।
गहराती हुई उस रात में,
होकर अपने जुनून पर सवार,
चल पड़ी थी अकेली ही उस राह पर मैं यार .....
पर कहां मंज़ूर तूझे ऐ वहशी दरिंदे
कर लूं मैं अपने ख्वाबों से प्यार
कहां बर्दाश्त थी तूझे अपनी हार।

रोया होगा आसमां भी उस वक्त
जब रौंदा तूने मेरे जिस्म को
उस बेदर्दी से यार...