...

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हाँ!! तुम पर्याप्त हो...
क्या हुआ... जो तुम अकेले हो!!
क्या हुआ...जो तुम्हारे पास भीड़ नहीं!!
हाँ!! पर्याप्त हो तुम स्वयं के लिए
हाँ!! पर्याप्त हो.....
तुम अकेले चलना जानते हो
गिर गए... तो सम्भलना जानते हो
जल रहे जिस ज्वाला में
होगी राख निसंदेह....
पर करेगी प्रज्वलित जीवन तुम्हारा
जब तलक ये धुएं
परिपक्वता की सीढ़ियां चढ़ाएंगे
जब तलक ये धुएं
छलों को, प्रपंचों को हटाएंगे
आँखों को जलन भी मिलेगी
हाथों में अपने छाले भी आएंगे
हाँ!! सबल हो तुम स्वयं के लिए...
हाँ!! स्वयं के लिए...


© vineetapundhir