...

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सोचती हूं अब और ना सोचूं
सोचती हूं अब और ना सोचूं
कुछ बिखरी हुई बातें हैं......
मन में भी सन्नाटे हैं........
लबों की मुस्कान कहीं छूट गई है...
नींद भी मानो रूठ गई है...
हर पल खींचा सा लगता है...
रह रहकर दिल विरां सा लगता है...
सोचती हूं पीछे मुड़ के अब ना देखूं
सोचती हूं अब और ना सोचूं ।

© Bhawna kumari