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नियति ने हमको इस जग की,ये कैसी दशा दिखाई है
नियति ने हमको इस जग की,ये कैसी दशा दिखाई है
ना किसी गैर का दुख समझा,ना पीड़ा कभी उठाई है
ना तन्हा सा सेवक है अब, ना पन्ना सी दाई है
अब तो अपनों ने ही सबपर,खुद ही तलवार उठाई है
नियति ने हमको इस जग की.................... 2

रामा-रामा रटते-रटते,उम्र हमारी बीत गई
सब घड़ियों पर तो सदैव,दुख की घड़ियां ही जीत गईं
ना किसी ने मेरा साथ दिया,ना मेरी शामत आई है
पहले भी अकेले लड़ते थे,जारी अब भी कठिन लड़ाई है
नियति ने हमको इस जग की..................... 2

अभी ना कलयुग बीता है, ना त्रेतायुग कल आएगा
भविष्य में लगता है कि, भाई-भाई को ही खायेगा
ना जग में कोई राम बचा,ना लक्ष्मण सा अब भाई है
धूर्त,कपटी और छलियों ने,इस जग में धाक जमाई है
नियति ने हमको इस जग की....................... 2

क्यों अंधकार इतना जग में,अज्ञान खोजता फिरता है
जो सत्य के पथ पर चलता है, वो ही अक्सर क्यों गिरता है
राम कथा सब सुनते हैं,पर चार ने बस अपनाई है
विघ्न जो लगता है पहाड़,असल में तो वो राई है
नियति ने हमको जग की ........................ 2

ना अनुज भरत सा है कोई,ना बलराम सा अग्रज देखा है
सम्पूर्ण कपालों पर जग के,क्यों छाई चिंता की रेखा है
चलते-चलते इस कलयुग में, ये कैसी विपत्ति आई है
ना शबरी सा भक्त यहाँ,ना कौशल्या सी माई है
नियति ने हमको इस जग की....................... 2

ना रिश्तों का है मोल यहाँ,ना वृक्षों की शीतल छाया है
सबने ही तो झूठों को,सच का चोगा पहनाया है
इस जग ने तो सदैव ही धनवानों की गाथा गाई है
सृष्टा कभी थी जो धरती,अब लगाती द्वेष की खांई है
नियति ने हमको इस जग की...................... 2

सब धन के हैं लोभी यहाँ,सब पर छाई इस जग की माया है
ना किसी में ममता बची यहाँ,ना विवेक किसी में आया है
ना किसी ने निर्धन को पूछा है,ना होती उनकी घर बुलाई है
लगता है भविष्य पर इस जग के,इक गहरी सी धुंध छाई है
नियति ने हमको इस जग की......................... 2
© प्रांजल यादव