...

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अंतहीन यात्रा 🙂
जीवन एक"अंतहीन यात्रा"देखो यहां कितने सुख दुख,
कहीं कदम निर्भय चलते हैं कहीं काल खड़ा सम्मुख,
मीठे बोलों से निज भ्राताओं का मन मोहा धृतराष्ट्र सुत,
लाक्षाग्रह में भस्म हो जाएं पाण्डव ये दुर्योधन का परम सुख।

हे! मानव कलयुग की पुकार समझ और सुन,
हर साथी पीठ पीछे शरासन ताने बना रूद्र,
मयंक जीवन की राहें कहां सीधी और शुद्ध,
यहां हर कदम पर काटें हैं या है भीषण युद्ध।

किंचित परिधि विचार की खोल पाता गर मनुज,
कहां तात पर शर बरसाता वीर पुरुष अर्जुन तनुज?
किंतु देखो दुविधा उसकी भगवान ने कहा हे!वीर अर्जुन,
जीवन एक"अंतहीन यात्रा"यहां कोई नहीं है...