अपनी रहमत बख्श
अपनी रहमत बख्श:-
*जिन्दगी बख्शी है,*
*तो जीने का सलीका भी बख्श।*
*ज़ुबान बख्शी है मेरे मालिक,*
*तो सच्चे अल्फ़ाज़ भी बख्श।*
*सभी के अन्दर तेरी ज्योत दिखे,*
*ऐसी तू मुझे नज़र भी बख्श।*
*किसी का दिल न दुखे मेरी वजह से,*
*ऐसा अहसास भी...
*जिन्दगी बख्शी है,*
*तो जीने का सलीका भी बख्श।*
*ज़ुबान बख्शी है मेरे मालिक,*
*तो सच्चे अल्फ़ाज़ भी बख्श।*
*सभी के अन्दर तेरी ज्योत दिखे,*
*ऐसी तू मुझे नज़र भी बख्श।*
*किसी का दिल न दुखे मेरी वजह से,*
*ऐसा अहसास भी...