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# जंजीर
इन जंजीरों को तोड़कर,
रुख हवा का मोड़कर।
चल रहे हैं देखो हम ,
जो अपने हैं वो खुश होगे,
गैर मातम मनाएंगे।
तब भी हम चलते जायेंगे,
हर सपने को साकार करूंगी ।
हर उपहासो का जवाब बनूंगी,
अपने माता पिता का सरताज बनूंगी ।
जब तक मंजिल नहीं मिलेगी ,
तब तक मैं चलती जाऊंगी ।
—अंकिता द्विवेदी त्रिपाठी—
© Anki
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