...

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◆ प्रेम अभिव्यक्ति ◆
ऐसा कोई स्वप्न कभी नही
संजोया ,,
हाँ ! पर एक सत्य तो है
जो इस काया में फूँक देता है
" प्राण "

तुम्हारे नाम का सम्बोधन
उच्च है मानो जैसे मंत्र के ,
पहले ओंकार का ॐ ,,

उस मंदाकिनी को भी हो जाये
संदेह , कि उससे पवित्र भी है
कोई " अहम् " के लिए ,,

तुम वजह हो मेरे
" स्वाभिमान " के सबसे ऊंचे
शिखर मानो मंदिर के अस्तित्व
का केंद्र वो ,,,
" कलश " और उसके ऊपर
स्थापित वो " ध्वज " ,,,

तुमने ही मिलवाया असल जीवन से
मानो जैसे पढ़ ली हो किसी
" मृत बुजुर्ग " की मानसिकता ,,

लिखने बैठा हूँ जो तुम्हें ,
स्याही खत्म है , कागदों को
आ रही हो " लाज " जैसे ,,

और ये शब्द हैं और
ये उथल - पुथल , जैसे
शांत न होने का लक्ष्य
ही साध बैठें हो , ,

मिलने पर बांध देती हो
जो " मणिबंध "
कलाई पर मेरी ,,
बचा लेता है , दुनिया की
गलत दृगों से ,,

इस " रक्षाकवच " में
लबालब है तुम्हारे
" पीताम्बरी " प्रेम
की शक्ति ,,,

तुम ही प्रेम हो
तुम ही प्राण हो ) : 🖤


© निग्रह अहम् (मुक्तक )

【 GHOST WITH A PEN 】