मेरी तन्हा रातें.... (पार्ट 2)
उपशीर्षक :- मेरी कलम मेरी साथी।।
to continued from....
मैंने दुनियां से तो कभी उम्मीद कि ही नहीं,
कि वो मुझे समझ पाएंगे।
पर दिल तो तब टुटा जब पता चला,
मेरे आपने भी मेरे भीतर के समंदर से अनजान रह जायेंगे।
पर अब तो मै उदास नहीं हूँ,
क्यूंकि मुझे कोई ऐसा मिला है।
जिसने मेरी बातों को समझा,
और इस दिल का बोझ हल्का किया है।
वो ही है जिसने मेरा साथ,
हमेसा दिया है।
करीब तो पहले से थी,
पर मैंने उसका साथ अब चुना है।
मेरे भीतर के तुफानो को उसने,
विश्राम दिया है।
तन्हा और थके जीवन को उसने,
आराम दिया है।
उसका और मेरा रिस्ता,
इतना सच्चा है।
बेसक है वो बेजान पर,
उअका साथ...
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मैंने दुनियां से तो कभी उम्मीद कि ही नहीं,
कि वो मुझे समझ पाएंगे।
पर दिल तो तब टुटा जब पता चला,
मेरे आपने भी मेरे भीतर के समंदर से अनजान रह जायेंगे।
पर अब तो मै उदास नहीं हूँ,
क्यूंकि मुझे कोई ऐसा मिला है।
जिसने मेरी बातों को समझा,
और इस दिल का बोझ हल्का किया है।
वो ही है जिसने मेरा साथ,
हमेसा दिया है।
करीब तो पहले से थी,
पर मैंने उसका साथ अब चुना है।
मेरे भीतर के तुफानो को उसने,
विश्राम दिया है।
तन्हा और थके जीवन को उसने,
आराम दिया है।
उसका और मेरा रिस्ता,
इतना सच्चा है।
बेसक है वो बेजान पर,
उअका साथ...