...

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मेरी तन्हा रातें.... (पार्ट 2)
उपशीर्षक :- मेरी कलम मेरी साथी।।

to continued from....

मैंने दुनियां से तो कभी उम्मीद कि ही नहीं,
कि वो मुझे समझ पाएंगे।
पर दिल तो तब टुटा जब पता चला,
मेरे आपने भी मेरे भीतर के समंदर से अनजान रह जायेंगे।
पर अब तो मै उदास नहीं हूँ,
क्यूंकि मुझे कोई ऐसा मिला है।
जिसने मेरी बातों को समझा,
और इस दिल का बोझ हल्का किया है।
वो ही है जिसने मेरा साथ,
हमेसा दिया है।
करीब तो पहले से थी,
पर मैंने उसका साथ अब चुना है।
मेरे भीतर के तुफानो को उसने,
विश्राम दिया है।
तन्हा और थके जीवन को उसने,
आराम दिया है।
उसका और मेरा रिस्ता,
इतना सच्चा है।
बेसक है वो बेजान पर,
उअका साथ दुनियां के हर इंसान से अच्छा है।
शायद वो पहली है जिसने,
समझा है मेरी बातों को।
दे दिया है एक नया रूप,
मेरी तन्हा नीरस रातों को।
खुदको अपनी नज़रों मै अपनाना,
इसने मुझे सिखाया है।
हर लम्हा एक कहानी बन गया,
जो भी मैंने इसके साथ बिताया है।
इसने मेरे जीवन मै मुझको
बहुत कुछ सिखाया है।
मेरे ही अस्तित्व कि सत्यता से,
इसने मुझे मिलाया है।
मेरी कलम ने मेरे जीवन को,
एक अनोखा मंज़र दिखाया है।
लोगो को खोद से रूबरू कराने का,
एक नया रास्ता बताया है।
वो मेरी कलम ही है,
जिसने मुझे कभी धोखा नहीं दिया है।
हर मोड़ हर, सुख- दुख पर
इसने मेरा साथ निभाया है।
अब मुझे जरुरत नहीं कि,
कोई करें कोशिस,
मुझे समझने कि।
क्यूंकि मेरी कलम ही है,
जिसने मुझे मेरे सच के साथ अपनाया है।
फर्क नहीं पड़ता लोग जो भी सोचे,
बोल ही सकता मै उनको अपनी सोच बदलने को।
वो जो चाहे वो कर ले बेसक,
क्युकी मेरे साथ अब मेरी कलम है,
मेरे जीवन मे खुशियाँ भरने को।

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