...

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बाते तुम्हारी
तुम्हारी हर बात थी
और बातों से मेरी कविता सांसे लेती थी
दिल को धड़काया भी तुमने था
और नशा तुम्हारा भी तुम्हीं ने दिया था
आज तुमने नशे की बोतलें तोड़ दी
जो आदतें तुमने दी
उन्हें ही छीन लिया
कहते हो आज़ाद करूँ
अब तुम मुझे समझा तो जाओ
जो खुद एक एक धागा तोड़ रहा हो
उसे भला क्या ही बाँधना
और क्या ही आज़ाद करना
अब तो वो कविता की
किताब भी खाली रहने लगी है
कहती है कलम को
तुम्हारे स्याही की आदत लगी पड़ी है
अब मानों कविताएं मुझसे खफा
और तुम से वफ़ा निभा रही है।।

© KALAMKIDIWANI