सूरत–ए–हाल
वक्त—बेवक्त की कुछ बात बताता हूं,
आओ तुम्हें देश की सूरत–ए–हाल दिखाता हूं।
ना जाने ये कौनसी बला आई है,
जिसका न तो कुछ इलाज, ना ही कोई दवाई है।
तमाम जहां के रेडियो, टी.वी., अखबारों और लोगों के दिलो दिमाग में दौड़ती है..,
ये जिसकी हो जाए उसकी जिंदगी को मौत के मुंह से जोड़ती है।
यूं इसके कारनामे तुम्हे चंद अल्फाजों में बताता हूं,
आओ तुम्हें देश की सूरत–ए–हाल दिखाता हूं।
ना इसका कोई अपना, ना कोई सगा संबंधी...,
चारो और बेरोजगारी और देश में है धमाकेदार मंदी।
ये लाखो करोड़ों को उनके परिवार से जुदा कर गई...,
देश के...
आओ तुम्हें देश की सूरत–ए–हाल दिखाता हूं।
ना जाने ये कौनसी बला आई है,
जिसका न तो कुछ इलाज, ना ही कोई दवाई है।
तमाम जहां के रेडियो, टी.वी., अखबारों और लोगों के दिलो दिमाग में दौड़ती है..,
ये जिसकी हो जाए उसकी जिंदगी को मौत के मुंह से जोड़ती है।
यूं इसके कारनामे तुम्हे चंद अल्फाजों में बताता हूं,
आओ तुम्हें देश की सूरत–ए–हाल दिखाता हूं।
ना इसका कोई अपना, ना कोई सगा संबंधी...,
चारो और बेरोजगारी और देश में है धमाकेदार मंदी।
ये लाखो करोड़ों को उनके परिवार से जुदा कर गई...,
देश के...