...

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पन्ने पर उभरते मोहब्बत के राज़

नहीं खोलना चाहते थे मोहब्बत के वो राज़
छिपा था जिनमें उन प्यारी मधुर यादों का आगाज़
याद कर जिन्हें मन ही मन हो जाते थे खुश
गुनगुनाने लगती थी ख़ुद- ब- ख़ुद सुर में आवाज़ ।

महसूस होती है बीते लम्हों की अब भी ताज़गी
जैसे छेड़ रहा वह तरन्नुम मन में लिए आवारगी
झनझना उठते हैं दिल के तार फिर एक साथ
बज उठती मधुर साजों की जैसे सुंदर पालकी।

कुछ तो था जो करता था आकर्षित उसकी ओर
बेशक वह थी उसकी सादगी जो बन गई थी चितचोर
कपड़े...