" प्रेम "
सोमरस या कहो तुम हाला,
प्रेम रस-सा न कोई हैं निराला,
एक घूंट जो इसका पीले,
भर जाए उसका प्रेम का प्याला।
बड़ा ही निर्मल, बड़ा ही शीतल,
बहती इसकी है धारा,
राधे- राधे नाम जपो,
पियो प्रेम का तुम एक प्याला।
जब भी प्रेम की याद सतावे,
आ जाओ तुम इस प्रेम की शाला ,
हाला से भी नशीला है,
पी लो तुम जरा प्रेम का प्याला।
कितना मोहक, कितना सुरीला,
प्रेम की ये है सुंदर लीला,
झूम रही है मीराबाई ,
पीली प्रेम रस वह नशीला।
प्रेम की ये है सुंदर वेला,
क्या! प्रेम रूप है ,
क्या! प्रेम है नशीला,
जो भी प्रेम के द्वारा आए,
देखता वो है प्रेम की सुरमई वेला।
यह प्रेम जगत है,
यह प्रेम ब्रह्मांड ,
यह प्रेम सद्गुण है ,
यही देवों का ध्यान,
यही प्रेम है जो कृष्ण का ज्ञान,
पूर्ण हुआ अब प्रेम बखान।
© श्रीहरि
प्रेम रस-सा न कोई हैं निराला,
एक घूंट जो इसका पीले,
भर जाए उसका प्रेम का प्याला।
बड़ा ही निर्मल, बड़ा ही शीतल,
बहती इसकी है धारा,
राधे- राधे नाम जपो,
पियो प्रेम का तुम एक प्याला।
जब भी प्रेम की याद सतावे,
आ जाओ तुम इस प्रेम की शाला ,
हाला से भी नशीला है,
पी लो तुम जरा प्रेम का प्याला।
कितना मोहक, कितना सुरीला,
प्रेम की ये है सुंदर लीला,
झूम रही है मीराबाई ,
पीली प्रेम रस वह नशीला।
प्रेम की ये है सुंदर वेला,
क्या! प्रेम रूप है ,
क्या! प्रेम है नशीला,
जो भी प्रेम के द्वारा आए,
देखता वो है प्रेम की सुरमई वेला।
यह प्रेम जगत है,
यह प्रेम ब्रह्मांड ,
यह प्रेम सद्गुण है ,
यही देवों का ध्यान,
यही प्रेम है जो कृष्ण का ज्ञान,
पूर्ण हुआ अब प्रेम बखान।
© श्रीहरि