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हकीकत ज़िंदगी
कदम जो ज़रा लड़खड़ाए हमारे,
तो अपने हौंसला अफज़ाई करने लगे।।
जो अहले अकल ने ज़रा तख्त छोरा,
तो कम अक्ल भी बादशाही करने लगे।।
लुबादा (चोला)जो हमने शरीफी का ओढ़ा,
सब मिलके हमारी बुराई करने लगे।।
कोशिशों बाद भी हमे जान न सके जो,
तो औरों से सुराग रसाई करने लगे।।
उठा जब नकाब उनके अपने सरों से,
बे वफा भी वादा वफाई करने लगे।।
क़िस्सा जो सुना उन्होंने रोज़े हश्र का,(अंतिम दिन)
मुनाफिक भी फर्ज़ इलाही करने लगे।।
दास्तां जो सुनी उन्होंने हमारी,
हमारे गमों की आजमाई(पूछ ताछ) करने लगे।।
सुना जब उन्होंने हैं शामिल गुनाह में,
ये सुनकर वो दामन बचाई करने लगे।।
पता जब चला उन्हें एक कतल का,
तो सारे कानूनी कार्रवाई करने लगे।।
मिली जब सफ़र में हमें दो(२) राहें,
दीवाने भी हमारी रहनुमाई(राह दिखाना) करने लगे।।
पता जब चला सब को कद का हमारे,
तो सारे हम तक रसाई (पहुंचने की कोशिश) करने लगे।।
ख़ज़ाने का उनको जो नक्शा मिला जब,
तो सारे ज़मीन की खुदाई करने लगे।।
उन्हें न पता था ग़ज़ल हे हमारी,
जब अच्छी लगी तो सराही ( तारीफ) करने लगे।।।।
© urooj khan (URK)
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